सागर : 7 दिवसीय शिव ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सागर के तत्वावधान में काकागंज सागर में भव्य कलश यात्रा निकाली गई. इस कलश यात्रा के साथ ही प्रथम दिवस में प्रवक्ता “राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी नीलम दीदी” ने शरीर और आत्मा के सत्य परिचय के साथ 7 दिवसीय शिव ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ किया. 

शक्तियों के ज्ञान के साथ हुई शुरुआत

 मैं कौन हूँ? ये मैं कहना वाला कौन है? शरीर या आत्मा? फिर आत्मा की तीन सूक्ष्म शक्तियां होती हैं, जिस प्रकार शरीर की आवश्यकता की पूर्ति पाँच तत्वों के माध्यम से होती हैं, उसी प्रकार आत्मा अपने सात गुणों (आनन्द, ज्ञान, शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति) का अनुभव तीन शक्तियों के माध्यम से करती हैं “मन, बुद्धि और संस्कार”

“मन”– आत्मा की पहली शक्ति विचार करने की क्षमता है, इच्छा शक्ति है, कल्पना करने की शक्ति है, महसूस करने की क्षमता है, मन तो चंचल घोड़ा है, तो बुद्धि मन की लगाम है.

“बुद्धि”– आत्मा की दूसरी सूक्ष्म शक्ति है बुद्धि। मन और बुद्धि का एक दूसरे के साथ गहरा सम्बंध है. मन सोचने की शक्ति है तो बुद्धि समझने की शक्ति है.

“संस्कार”– आत्मा की तीसरी शक्ति है संस्कार. मनुष्य अपने मन के विचारों को बुद्धि की विवेक शक्ति से समझकर जब स्वतंत्र इच्छा से कर्म करने लगता है, तब वह कर्म आत्मा पर अपना प्रभाव डालता है वही संस्कार है.

अब हमें इनके वास्तविक स्वरूप को जान स्वयं को परमात्मा को सौंपना है निमित्त भाव रख सम्भालना है. यह शरीर रथ है और आत्मा को सारथी कहते हैं.

आधुनिक महाभारत काल में कौरव कौन ? पांडव कौन ? परमपिता परमात्मा शिव राजयोग सिखला कर, सत्य गीता का ज्ञान, सत्य शिक्षा देकर नर से श्रीनारायण और नारी से श्रीलक्ष्मी बनने का मार्ग बता रहे हैं. गीता का ज्ञान हर धर्म के लिए है.हर मानव के कल्याण की राह श्रीमद्भगवद्गीता में समाई हुई है.

गीता में काम और क्रोध को अग्नि के समान बताया है जो मानव को अंदर ही अंदर जलाते रहते हैं. इसका दुष्प्रभाव हमारे मन के साथ शरीर पर भी पड़ता है. अपने आप को गीता ज्ञान सुनने और उसे धारण करने के योग्य बनाना होगा. क्योंकि ये जो कथा हम सुन रहे हैं ये हमारी ही कथा है, हमारे जन्मों- जन्मों की कथा. तो चलो हम अपने आप को चेक करते हैं कि हम कौरव हैं या पांडव.

यदि हम पांडव हैं तो “युधिष्ठिर” की तरह विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी श्रेष्ठता में स्थिर, भीम की तरह आत्मबल, अर्जुन की तरह एकाग्र, सहदेव की तरह सहयोग की भावना और नकुल की तरह देवताओं के जीवन और उनके गुणों की नकल कर हमारा जीवन श्रेष्ठ और सुंदर बना है. यदि हाँ, तो हम सच्चे प्रीत बुद्धि अर्थात पांडव कहलाएंगे.

दुनिया में हर माँ का सपना होता है कि उन्हें श्रीकृष्ण जैसा बच्चा हो. उनके जैसा चरित्र, कर्म, व्यवहार हो जो कुल का नाम रोशन कर माता-पिता का मान बढ़ाये.

इसके लिए जरूरी

◾️माता-पिता को पहले अपने जीवन को श्रेष्ठ, महान बनाना होगा.

◾️उन्हें बचपन से जीवन को महान बनाने की शिक्षा देना होगी.

◾️अपने बच्चों को बचपन से बड़ों का आदर, सम्मान करना सिखाये।

अंत में मेडिटेशन अभ्यास के बादश्री मदभागवत् जी की आरती कर प्रसाद वितरण किया गया.

इस अवसर पर सागर सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी छाया दीदी, ब्रह्माकुमारी लक्ष्मी बहन,ब्रह्माकुमारी आरती बहन, ब्रह्माकुमारी खुशबू,पार्वती बहन, कामनी बहन, सुरभि बहन और अन्य भाई-बहिन उपस्थित रहे.