दीपावली सत्य धर्म का दीपक – ब्रह्माकुमारी छाया दीदी

सेवाकेंद्र प्रभारी राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी छाया दीदी” ने दीपावली पावन पर्व की शुभकामनाएं देते हुए दीपावली के आध्यात्मिक रहस्य को बताते हुए कहा, कि दीपावली का पर्व ज्योति का पर्व है।

दीपावली पुरुषार्थ का पर्व, आत्म-साक्षात्कार का पर्व है। यह अपने भीतर सुषुप्त चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है। यह हमारे आभामंडल को शुद्ध और पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश देने का पर्व है। आज हर मानव के भीतर अज्ञान का “तमस” छाया हुआ है। वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। 

दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप- ज्ञान

 जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों ओर प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है। अंधकार का साम्राज्य स्वत: समाप्त हो जाता है।

ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार जैसे मोह, अहंकार, ईर्ष्या को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और लालच आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई अनैतिकता, भ्रष्टाचार जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है। दीपावली पर सभी अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सज्जा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर अंतर चेतना के आंगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर साफ किया जाए, उसे नियम-संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मारूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित कर दिया जाए तो मानव शाश्वत, सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त कर सकता है।

आओ, प्रभु संग आत्मिक दीप हम भी जलाएं

मिट्टी का दीया माना मिट्टी का शरीर और उसमें आत्मारूपी बाती को जलाने के लिए घी या तेल के रूप में परमात्मा का ज्ञान चाहिए, जिससे वो आत्मा हमेशा जागृत रहेगी और अपने प्यार, शांति और खुशी के ओरिजिनल संस्कारों से अपने आस पास की आत्माओं को भी जागृत कर देगी। इसलिए जब भी जीवन में कोई भी तूफान आए और हमारे दिए की लौ थोड़ा टिमटिमाने लगे तो, हमें तुरंत कुछ क्षण रुक कर परमात्मा की याद में, उनके ज्ञान का घी डालकर अपनी लौ को वापस तेज कर देना है। हम सभी अपने रिश्तों से बहुत सारी इच्छाएं रखते हैं जैसे कि प्यार चाहिए, सम्मान चाहिए, शांति चाहिए, विश्वास चाहिए, आशाएँ पूरी होनी चाहिए, हर रिश्ते में हर किसी को कुछ ना कुछ चाहिए, लेकिन हम कभी भी देने की बात नहीं सोचते, तो अगर हर किसी को हर किसी से कुछ न कुछ चाहिए तो हम सभी लेने वालों की लाइन में खड़े हैं जिसमें कभी मिलेगा और कभी नहीं मिलेगा, इसलिए सबसे जरूरी बात है कि, हमें दूसरों पर आश्रित नहीं रहना है। और इसके लिए हर एक घर में एक दिया अर्थात दीपक चाहिए जो सबको देने वाला हो, इसके लिए हमें हर रोज अभ्यास करना होगा कि मैं सबको देने वाली आत्मा हूं, मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए। मैं आत्मा, मेडिटेशन के अभ्यास द्वारा परम ज्योति यानी परमात्मा से प्यार, शांति, शक्तियां और ज्ञान लेकर भरपूर होती हूं और अपने सभी रिश्तों में प्यार, शांति, शक्ति, ज्ञान और सम्मान देती हूं। सबको देती हूं और हमेशा देती हूं जिससे उनकी आत्मा रूपी लौ सदा जलती रहे और हमारे जीवन में सब शुभ ही शुभ होता रहे। हर एक घर में एक दिया बहुत जरूरी है और जब यह एक दिया जलता है, जागृत होता है तो, यह अपने आस पास की सभी आत्माओं को भी जागृत करता है। इस प्रकार से एक दिए से दूसरा दिया जलता जाता है और दीपमाला बनती जाती है।

 “दीया” माना देना सहयोग सत्कार,अपनापन,सुख,प्रेम तो जीवन में संतोष धन आता है। फिर अगले दिन नरकचतुर्दशी अर्थात नरकासुर का नाश हमारी सद्गुणरूपी रानियाँ हमारे ही अवगुणों में कैद हो चुकी हैं अब हमें परमात्मा के ईश्वरीय महावाक्य सुन कर उन्हें कैद से छुड़ाना है। फिर आती है “दीपावली” जब हम सहयोग ,प्रेम सुख सत्कार देना सीख गए हैं और सद्गुणों को हमने कैद से छुड़ा लिया है तो अब यही है सच्ची-सच्ची “दीपावली” ।

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेवाकेंद्र सागर में श्री लक्ष्मी नारायण जी की चैतन्य झाँकी सजाई गई आरती की गई और प्रसाद वितरण किया गया।


इस अवसर पर पूर्व ट्रैफिक पुलिस अधिकारी श्रीमान सोनी जी सपत्नी सहित ब्रह्माकुमारी नीलम, ब्रह्माकुमारी लक्ष्मी,ब्रह्माकुमारी दीपिका,ब्रह्माकुमारी आरती ब्रह्माकुमारी खुशबू,ब्रह्माकुमारी पार्वती एवं समस्त भाई बहनें उपस्थित रहे।