कलश यात्रा के साथ श्रीमद्भागवत गीता का शुभारंभ

कलश यात्रा के साथ श्रीमद्भागवत गीता का शुभारंभ

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सागर के तत्वावधान में बाघराज मंदिर, आवासीय कॉलोनी,सागर में सात दिवसीय श्रीमद भागवत गीता का सार, सुखमय जीवन का आधार, गीता ज्ञान यज्ञ का भव्य कलश यात्रा के साथ शुभारंभ किया गया.

“राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी नीलम बहन जी” ने परमपिता परमात्मा शिव का आह्वान करते हुए शरीर और आत्मा के सत्य परिचय के साथ श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ किया, कि मैं कौन हूँ? हम हर बात में मैं-मैं करते हैं तो ये मैं कहने वाला कौन है? शरीर या आत्मा? तो ये मैं कहने वाली आत्मा है और मेरा यह शरीर हमारा शरीर पाँच तत्वों से मिलकर बना है. आत्मा अपने सात गुणों (आनन्द, ज्ञान, शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति) का अनुभव तीन शक्तियों के माध्यम से करती है-मन, बुद्धि और संस्कार. आत्मा की पहली शक्ति विचार करने की क्षमता है,  इच्छा शक्ति है, कल्पना करने की शक्ति है, महसूस करने की क्षमता है. मन तो चंचल घोड़ा है, तो बुद्धि मन की लगाम है. बुद्धि- आत्मा की दूसरी सूक्ष्म शक्ति है बुद्धि, मन और बुद्धि का एक दूसरे के साथ गहरा सम्बंध है. मन सोचने की शक्ति है तो बुद्धि समझने की शक्ति है. संस्कार- आत्मा की तीसरी शक्ति है संस्कार, मनुष्य अपने मन के विचारों को बुद्धि की विवेक शक्ति से समझकर जब स्वतंत्र इच्छा से कर्म करने लगता है, तब वह कर्म आत्मा पर अपना प्रभाव डालता है वहीं संस्कार है. अब हमें इनके  वास्तविक स्वरूप को जान स्वयं को परमात्मा को सौपना है निमित्त भाव रख सम्भालना है. कहते हैं- आधुनिक महाभारत काल में कौरव कौन? पांडव कौन ? परमपिता परमात्मा शिव इस धरा पर आकर राजयोग सिखला कर, सत्य गीता का ज्ञान, सत्य शिक्षा देकर नर से श्रीनारायण और नारी से श्रीलक्ष्मी बनने का मार्ग बता रहे हैं. गीता का ज्ञान हर धर्म के लिए है. हर मानव के कल्याण की राह श्रीमद्भागवत गीता में समाई हुई है. गीता में काम और क्रोध को अग्नि के समान बताया है जो मानव को अंदर ही अंदर जलाते रहते हैं. इसका दुष्प्रभाव हमारे मन के साथ शरीर पर भी पड़ता है. हमें अपने आप को गीता ज्ञान सुनने और उसे धारण करने के योग्य बनाना होगा. क्योंकि ये जो कथा हम सुन रहे हैं ये हमारी ही कथा है. हमारे जन्मों-जन्मों की कथा. तो चलो हम अपने आप को चेक करते हैं – कि हम कौरव हैं? या पांडव?  यदि हम पांडव हैं तो युधिष्ठिर की तरह विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी श्रेष्ठता में स्थिर रहते हैं, भीम की तरह आत्मबल, अर्जुन की तरह एकाग्र, सहदेव की तरह सहयोग की भावना और नकुल की तरह देवताओं के जीवन और उनके गुणों की नकल कर हमारा जीवन श्रेष्ठ और सुंदर बना है. यदि हाँ, तो हम सच्चे प्रीत बुद्धि अर्थात पांडव कहलाएंगे. देखो, दुनिया में हर माँ का सपना होता है कि उन्हें श्रीकृष्ण जैसा बच्चा हो. उनके जैसा चरित्र, कर्म, व्यवहार हो, जो कुल का नाम रोशन कर माता-पिता का मान बढ़ाये. इसके लिए जरूरी है, कि माता-पिता को पहले अपने जीवन को श्रेष्ठ, महान बनाना होगा. उन्हें बचपन से जीवन को महान बनाने की शिक्षा देना होगी. अपने बच्चों को बचपन से बड़ों का आदर, स्नेह, सम्मान करना सिखायें.


मेडिटेशन अभ्यास के बाद श्रीमद भागवत जी की आरती कर प्रसाद वितरण किया गया.


इस अवसर पर सागर सेवा केन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी छाया दीदी,  ब्रह्माकुमारी लक्ष्मी बहन,ब्रह्माकुमारी खुशबू बहन,ब्रह्माकुमारी मोनिका बहन 

कृष्णगंज वार्ड पार्षद श्रीमान अनूप उर्मिल जी ने कथावाचक जी का पुष्पमाला से स्वागत किया और  अन्य भाई-बहन उपस्थित रहे.