आयुर्वेद में स्वर्ण प्राशन एक ऐसा रसायन है जिसे सोने के साथ शहद, घी, और जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर बनाया जाता है. इसे स्वर्ण बिंदू प्राशन भी कहा जाता है. यह बच्चों के लिए एक आयुर्वेदिक तैयारी है जिससे इनकी प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ती है. डाॅ. पारूल सारस्वत, आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी
संचालनालय आयुष मध्यप्रदेश एवं जिला आयुष अधिकारी डाॅ. जोगेंद्र सिंह ठाकुर के मार्गदर्शन में जिला नोडल अधिकारी डॉ. पारुल सारस्वत (आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी) अनुसार “नवम आयुर्वेद दिवस ” “वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार ” विषय पर कार्ययोजना के अंतर्गत आज विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद गतिविधियों के लिए कार्यालय के अधीनस्थ शासकीय औषधालय एवं चिकित्सालय द्वारा विभिन्न विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में जाकर छात्र एवं छात्राओं को आयुर्वेद का महत्व बताया गया.
1. दिनचर्या एवं ऋतुचार्य का महत्व बताया
2. स्कूल में बालक एवं बालिकाओं को स्वर्ण प्राशन कराया गया.
स्वर्ण प्राशन का महत्व
• यह बच्चों के शारीरिक और बौद्धिक विकास के लिए फ़ायदेमंद होता है.
• यह बच्चों को जन्म के पहले दिन से ही दिया जा सकता है और 16 साल की उम्र तक दिया जा सकता है.
• यह उन बच्चों के लिए भी फ़ायदेमंद होता है जो ऑटिज़्म, लर्निंग डिफ़िकल्टी जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं.
• स्वर्ण प्राशन से बच्चों में क्रोध, अति सक्रियता, और बेचैनी कम होती है.
• यह बार-बार होने वाली सर्दी, खांसी, और बुखार को रोकता है.
3. आयुर्वेद थीम पर वाद विवाद, चित्रकला एवं रंगोली प्रतियोगिता आयोजित कर पुरस्कार वितरित किए गए.
4. सदाचार आचार रसायन आदि के महत्व को समझाया
आचार रसायन
आयुर्वेद में स्वास्थ्य और खुशी को बढ़ाने के लिए एक नियमित आचरण प्रक्रिया है. इसमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक जीवनशैली को अपनाना शामिल है. यह एक औषधि रहित उपाय है, जिसमें दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता.
आयुर्वेद नवाचार कार्योजना के तहत लगभग दो हजार से अधिक लोग लाभांवित हुए हैं.

