हमारा भोजन शुद्ध होना चाहिये प्रत्येक व्यक्ति को सदैव शाकाहारी रहना होगा तभी हमारा मन सात्विक रह सकेगा सात्विक मन से ही भगवान की शुद्ध भक्ति की जा सकेगी.
कथा व्यास रसराज दास जी महाराज ने कथा के सप्तम विश्राम दिवस में कहा कि सबसे पहले हमारा भोजन शुद्ध होना चाहिये प्रत्येक व्यक्ति को सदैव शाकाहारी रहना होगा तभी हमारा मन सात्विक रह सकेगा. सात्विक मन से ही भगवान की शुद्ध भक्ति की जा सकेगी हमें भगवान के साधन भजन में अनन्यता रखनी चाहिए जो नियम हमने ले लिया है उसका हमेशा पालन करना चाहिये चाहे परिस्थिति अनुकूल हो या न हो, तभी हम अपने भजन में सिद्धता प्राप्त कर पाएंगे. महाराज जी ने भगवान् के विभिन्न विवाह के साथ भगवान कृष्ण और रुक्मणी के विवाह की कथा सुनायी. उन्होंने यमुना जी की महिमा बताते हुए कहा की सभी को यमुना जी का आश्रय जरूर लेना चाहिये जो यमदुतिया के दिन यमुना जी में स्नान और आचमन करते हैं उन्हें यमराज जी की यम यातना सहन नहीं करनी पड़ती, हम जब भी जिस तीर्थ में जावें तो उस तीर्थ में स्नान और आचमन अवश्य करना चाहिए नहीं तो उस तीर्थ में जाने का फल हमें नही मिलता, प्रायः आजकल लोग तीर्थों में केवल घूमने और मनोरंजन करके चले आते है. इस भारतवर्ष की सबसे पहली नदी सरजू जी है जो भगवान के साक्षात् आंसू है केवल सरजू जी का एक बार आश्रय लेने पर वह भगवान के धाम को जाता है. वैष्णव के लिए तंबाकू और अन्य व्यसन के पदार्थों का सेवन नही करना चाहिये तंबाकू खाने से गौ माता का मॉंस खाने के समान पाप लगता है. उन्होंने कहा दान की बहुत महिमा है लेकिन दान करते हुए हम ये ध्यान रखें कि हम जब भी दान करते हैं तो दान करने का अभिमान नही करना चाहिए नहीं तो वह फिर दान नही रह जाता. महाराज जी ने सुदामा चरित्र सुनाते हुए कहा की भगवान् अपने भक्तों से इतना प्रेम करते हैं कि अपने परम मित्र सुदामा का भगवान् ने चरणामृत पिया है. भगवान् अपने भक्तों से बहुत प्रेम करते हैं और भगवान् ने अधिकतर निष्काम भक्तों से ही अधिक प्रेम किया है.