धर्म के द्वारा ही व्यक्ति के जीवन में संस्कारों का सृजन होता है, धर्म का पालन करना ही आत्मरक्षा करना है.
स्मार्ट सिटी सागर के पोद्दार कॉलोनी में आयोजित श्रीमद भागवतम कथा में मलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्र दास महाराज के कृपापात्र शिष्य कथा व्यास रसराज दास महाराज ने कथा के द्वितीय दिवस में धर्म की व्याख्या करते हुए कहा की धर्म के द्वारा ही व्यक्ति के जीवन में संस्कारों का सृजन होता है, धर्म का पालन करना ही आत्मरक्षा करना है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म में स्थित रहना चाहिए. सत्य की व्याख्या करते हुए महाराज जी ने कहा कि “सत्य परेशान हो सकता है लेकिन हार नहीं सकता” राजा हरिश्चंद्र सत्य पर चलते हुए परेशान भले ही हो गए, लेकिन आखिर सत्य की ही जीत हुई. उन्होंने कहा कि आजकल व्यक्ति इस भयंकर समय में भगवान की उपासना करें तो कैसे करें क्योंकि लोग आलसी बहुत हो गए हैं, भोजन के आलसी नहीं हैं भजन के लिए हैं, राम नाम के आलसी भोजन में होशियार. भागवत में सूत जी ने बताया की भगवान प्रेम से प्रसन्न होते हैं प्रेम मार्ग ही श्रेष्ट मार्ग है. आजकल तुच्छ घृणित संसारी भोगों को देखकर हम लोग उसी को ही प्रेम मान लेते हैं, वस्तुतः प्रेम अपने आप में एक अलग ही वस्तु है जिसमें आपस में कोई स्वार्थ नहीं होता, जिसमें स्वार्थ की गंध भी न हो उसे ही सच्चा प्रेम कहते हैं. हमें जीवन में शिक्षा लेनी हो तो महापुरुषों से ही लेनी चाहिए अन्य किसी से भी शिक्षा लेने से हमारा जीवन बर्बाद हो जायेगा. हमें केवल भगवान का नाम ही पुकारना चाहिए आज कल हमें जरा सा भी कष्ट होता है तो हम संसार में कई जगह भटकते फिरते हैं. हमें तो केवल भगवान का ही सहारा लेना चाहिए. महाराज ने भीष्म पितामाह के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि भीष्म के यहाँ एक भी पुत्र नहीं था पर भगवान से अनन्य प्रेम करने वाले पितामाह का सारा संस्कार भगवान के सामने हुआ और उनके भगवान को देखते ही देखते और उनका नाम लेते ही प्राण निकले यही जीवन की श्रेष्टता है.
कथा में प्रदेश महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती लता वानखेड़े और विश्व हिन्दू परिषद् के अजय दुबे ने महाराज जी का फूलमाला से स्वागत कर आशीर्वाद लिया.
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