धार्यति धर्म जो धारण करते हैं वह धर्म है और श्रद्धा से जो भी कर्म किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध मात्र भोजन नहीं कृतज्ञता है पूर्वजों वंशजों के प्रति। यह उद्गार आर्ष परिषद स्वामी रामकृष्ण विवेकानंद भावधारा मंच तथा मातृ पितृ सेवा समिति के संयुक्त तत्वाधान में अपना लाज बस स्टैंड पर आयोजित धर्म सभा एवं पितरंजलि कार्यक्रम में व्यक्त किये ।
मुख्य अतिथि डॉ बी डी पाठक ने कहा कि श्राद्ध एक पर्व है इसे पूर्ण मनोयोग से आनंद से मनाना चाहिये। जितना सामर्थ हो उतना खर्च करना चाहिए । कर्ज लेकर श्राद्ध नही करना चाहिये।अध्यक्ष डॉ भुवनेश्वर प्रसाद तिवारी ने श्राद्ध और धर्म के मर्म पर गहन विचार करते हुए कहा कि श्राद्ध के अनंन्त प्रकार पुराणों स्मृतियों उद्धृत हैं । उनमें से एक विधि को लेकर हमे पूर्वजों का श्राद्ध करना चाहिए। इसका हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्त्व है।
इस दौरान आचार्य पं वासुदेव द्विवेदी, टीकाराम त्रिपाठी, महेश दुबे, पुरुषोत्तम उपाध्याय ने श्राद्ध पर शास्त्रीय विमर्श किया।
कार्यक्रम में मंच संचालन अपर लोक अभियोजक एड पं दीपक पौराणिक ने किया । सोमा चौरसिया, डॉ संतोष साहू,पिंकी खटीक, विनीता शर्मा ने संगीतमय कीर्तन और भजन प्रस्तुति दी।
कार्यकम में पं टीकाराम त्रिपाठी जी,राजेन्द्र दुबे,देवकीनंदन रावत,डॉ नलिन जैन,डॉ ऋषभ भरद्वाज ,पं सूर्यकान्त द्विवेदी,वृंदावन राय सरल,संतोष साहू, विनोद सिंघई,श्यामाचरण चौरसिया,एम शरीफ,पूरन सिंह राजपूत,सतीश दुबे, लक्ष्मी दुबे,पिंकी खटीक, विनीता शर्मा,शुभा मलैया,विभा मलैया,पं विजय पाठक,पं घनश्याम दुबे, एंन बी राजपूत,पं विजय तिवारी, रघुनाथ प्रसाद पाराशर, पुरुषोत्तम उपाध्याय,सुनील जी,हरिकिशन कोरी,एड कृष्णकुमार गुरु मुरलीमनोहर शुक्ला, अमित कुमार दुबे, महेश दुबे मुकेश तिवारी आदि शहर के अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।