स्वामी विवेकानंद का शिक्षा दर्शन.

“शिक्षा का मूल उद्देश्य है अन्तर्निहित क्षमताओं का संपूर्ण रचनात्मक विकास. स्वयं के आत्म सम्मान पर पूर्ण विश्वास करते हुए विश्व कल्याण की दिशा में संस्कार युक्त सीखने और सकारात्मक करने की शुरुआत ही शिक्षा के वास्तविक उद्देश्यों में माने जा सकते हैं. 

ज्ञान योग, कर्म योग और प्रज्ञा से प्रसन्नता की यात्रा…

ऐसी अनेक बातों से ही स्वामी विवेकानंद के शिक्षा दर्शन को समझा जा सकता है.” ये विचार दिए प्रो. दिवाकर सिंह राजपूत ने एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए.


डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता एवं समाज शास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर दिवाकर सिंह राजपूत ने कहा कि शिक्षा केवल जानकारियो का संग्रहण मात्र नहीं है. शिक्षा तो प्रज्ञा के प्रस्फुटित होने का एक आधार है. शिक्षा संस्कृति का संरक्षण सिखाती है, सीखने वाले की पहचान बनाती है. शिक्षा ही है जो सम्मान और सोच को मजबूत बनाने का काम करती है. प्रो राजपूत ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने ऊर्जा और उत्साह से पूरित युवा वर्ग की बात की थी.

राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हिमांचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला द्वारा किया गया. ऑनलाइन मोड में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश की विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों से शिक्षक व शोधार्थियों ने सहभागिता की.