सागर : जैन ग्रंथो के संरक्षण और प्रबंधन पर संगोष्ठी.

वर्तमान समय में भारत सरकार द्वारा प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने से प्राचीन जैन ग्रंथो का महत्व बढ़ा है और भारतीय ज्ञान परंपरा की जैन परंपरा को संरक्षण करने के लिए नई तकनीकों को अपनाना चाहिए ताकि आगामी पीढ़ी उससे लाभ उठा सके.

उक्त विचार तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत महासंघ के मंत्री डिप्टी लाइब्रेरियन डॉ संजीव सराफ ने श्री जैन तीर्थ नैनागिर में आयोजित संगोष्ठी सह कार्यशाला में व्यक्त किए । आयोजक मंडल के रक्तवीर समीर जैन, आलोक जैन, पवन जैन, नीलेश जैन, सुमति प्रकाश जैन ने बताया की आयोजन में देश भर के 40 प्रतिभागी शामिल हुए। प्रतिभागियों को जैन ग्रंथो के संरक्षण और प्रबंधन पर जिनवाणी संरक्षण और प्रबंधन समिति द्वारा आचार्य देवनंदी स्वाध्याय एवं शोध संस्थान द्वारा मार्गदर्शन दिया गया।


कार्यक्रम खुशी जैन, शची जैन और श्रेया जैन को श्रुत आराधक सम्मान से सम्मानित किया गया।


कार्यक्रम में लाइब्रेरियन दीपाली जैन, डॉक्टर अजीत जैन, सुनील मालथोन, डॉ संजय जैन ने विचार व्यक्त किए।

मुख्य अतिथि प्रमोद जैन बारदाना,अध्यक्षता देवेन्द्र लुहारी और विशिष्ट अतिथि पंकज सोनी,राकेश जैन चाचू थे।

संचालन सुमति प्रकाश जैन के द्वारा और आभार समीर जैन ने किया।

क्षेत्र के अध्यक्ष सुरेश जैन आई ए एस और न्यायमूर्ति विमला जैन ने बताया की देवनंदी शोध संस्थान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित सूचीकरण और वर्गीकरण के द्वारा पूरा कार्य हो चुका है और कंप्यूटरीकरण का कार्य अंतिम चरण में है। यह देश की पहली जैन लाइब्रेरी है जिसने यह मुकाम हासिल किया है।

कार्यक्रम में कंछेदी दाऊ, विकास जैन, पारस जैन, विकास जैन , रोहित जैन का सहयोग रहा।