वैज्ञानिक संत पाठशाला सम्वर्धक आचार्यश्री निर्भयसागर जी महाराज संघ सहित शास्त्री वार्ड सुभाष नगर सागर में विराजमान हैं. आचार्यश्री ने योग दिवस की जानकारी देते हुए जनसमुदाय के बीच उपदेश देते हुए कहा योग दिवस मनाने की शुरुआत सबसे पहले साल 2015 में की गई थी.
योग शरीर को रोगमुक्त रखता है और मन को शांति प्रदान करता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव रखकर 2014 में इसकी शुरुआत की. उसके बाद 21जून को इन्टरनेशनल योग दिवस मनाया जाने लगा. 21 जून का दिन खास वजह से चुना गया था क्योंकि इस दिन उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लम्बा दिन हुआ करता है जिसके कारण इस दिन को ग्रीष्म संक्रांति भी कहते हैं. आचार्यश्री ने योग का अर्थ समझाते हुए कहा मुझ धातु से योग की व्युत्पत्ति हुई है. योग का अर्थ जोड़ना मिलना एकत्रित करना आदि अनेक अर्थ हैं. अध्यात्म दृष्टि से अंतर जगत से जुड़ जाना योग कहलाता है. हम जितने अंतर जगत से जुड़ते चले जाते हैं उतने परमात्मा के करीब पहुंचते चले जाते हैं. यह राज योग , हठ योग , क्रिया योग , मंत्र योग, क्रिया योग , मंत्र योग, कर्म योग , ज्ञान योग , ध्यान योग , भक्ति योग , अष्टांग योग , लव योग आदि अनेक अनेक प्रकार से जाना जाता है. आचार्यश्री ने जैन दर्शन में योग का वर्णन करते हुए कहा मन वचन काम रुपी तीन योग होते हैं. इन योगों की प्रवृत्ति रुकने पर आत्मा में लगे हैं. योग दिवस मात्र स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रारम्भ किया गया है लेकिन अध्यात्म की दृष्टि से आत्मा को परमात्मा से मिलाने का नाम योग है और शरीरातीत होकर आत्मा को प्राप्त करने के लिए जो उपक्रम किया जाता है उसका नाम योग है. वास्तव में संत योग साधना करता है इसलिए वह योगी कहलाता है. आचार्यश्री ने कहा जिंदगी में आपत्ति विपत्ति आना जिंदगी का अंग है, लेकिन आपत्ति विपत्तियों को साहसपूर्वक मुस्कुराते हुए सामना करना एक कला है.
प्रवचन से पूर्व आचार्य संघ ने योगासन के साथ योग साधना की. आचार्यश्री की संगीत में पूजन हुई.
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