GST स्लैब सिस्टम में बदलाव की जरूरत

जीएसटी पर जनता सरकार और व्यापारी का त्रिकोणीय योगासन चल रहा है ।

आज “जीएसटी दिवस” नहीं था पर माहौल वैसा ही था — जब CAIT के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी. भरतिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जीएसटी की नई चमकदार तस्वीर पेश की।इन्होंने बताया — “सरकार ने कर कम कर दिए, व्यापार बढ़ गया, और देश आगे बढ़ रहा है…”

बस अफसोस… बढ़े तो दाम भी हैं — वो भी खुदरा बाजार में, बिना रिटेल प्राइस तय हुए!

जी हाँ, देश में अभी तक “एक देश, एक टैक्स” तो है… पर “एक देश, एक दाम” कब होगा — इसका जवाब न सरकार दे पा रही है, न व्यापारी!

किताब सस्ती है, पर कागज़ महँगा — अब बच्चा पढ़े या व्यापारी हिसाब करे, ये तय करना मुश्किल है। खाद्य पदार्थों पर टैक्स घटा, पर होटल का बिल देखकर लोग अब भी उबल रहे हैं। CAIT के अध्यक्ष जी ने कहा कि “जीएसटी ने व्यापार को सरल बना दिया है।”

सरल तो इतना बना दिया कि अब व्यापारी को समझ नहीं आता — रिटर्न भरे, बिल बनाए या फॉर्म में फंसे!

किताबवाला बोलता है — “ज्ञान सस्ता है, पर ज्ञान छापना महँगा!”

और जनता कहती है — “हम तो वही दे रहे हैं जो व्यापारी बताए… टैक्स का नहीं, भरोसे का बिल चाहिए!”

कुल मिलाकर जीएसटी ने देश को तीन हिस्सों में बाँट दिया ।

सरकार खुश है कि टैक्स कम हुए, व्यापारी खुश है कि मुनाफा बढ़ा, और जनता खुश होने की कोशिश कर रही है!

जीएसटी पर कद्दावर विधायक और पूर्व मंत्री की होटल में प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई, और सुनकर लगा जैसे अब व्यापार की सारी परेशानियाँ खत्म हो गई हों!

Confederation of All India Traders यानी CAIT के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी. भरतिया ने बताया — “सरकार ने टैक्स घटा दिया, सिस्टम सुधर गया, और व्यापारियों को नई राहत मिली।”

सुनने में तो सबकुछ “गुड एंड सिंपल टैक्स” जैसा लगा…

लेकिन ज़मीन पर कहानी थोड़ी अलग है — गुड बहुत है, सिंपल आज भी नहीं!

अध्यक्ष महोदय सरकार के सुर में सुर मिलाते हुए नज़र आए —

कहा कि “अब टैक्स स्लैब्स में राहत मिली है, व्यापार सुचारु हो रहा है।”

लेकिन देश के बाज़ारों में घूमिए तो पता चलता है — राहत के नाम पर व्यापारी अब “टैक्स” नहीं, “कन्फ्यूज़न” गिन रहे हैं! कई सेक्टर ऐसे हैं जहाँ टैक्स कम हुआ, पर मुनाफा बढ़ाने के लिए व्यापारियों ने दाम अपने हिसाब से बढ़ा दिए।

अब ग्राहक पूछता है — “सरकार ने टैक्स घटाया तो चीज़ें सस्ती क्यों नहीं हुईं?”

और व्यापारी मुस्कुराकर कहता है — “कागज़ महँगा है, भाई साहब!” 😄

रिटेल प्राइस तय करने की कोशिश आज भी अधूरी है। देश में एक टैक्स है, लेकिन हर शहर का अलग-अलग दाम ।

◾️कुल मिलाकर जीएसटी की कहानी में सब खुश हैं —

◾️सरकार खुश है कि टैक्स कलेक्शन बढ़ रहा है,

◾️व्यापारी खुश है कि माल बिक रहा है,

◾️और जनता… वो तो अब बस मुस्कुराकर पूछती है —

◾️“भाई साहब, ये रेट टैक्स के बाद का है या पहले का?”