बिहार के हालिया चुनाव परिणाम इस बात की स्पष्ट गवाही हैं कि जनता ने राजनीतिक कटुता के बीच स्थिरता और काम-काज को प्राथमिकता दी। एनडीए को मिली चुनावी बढ़त सिर्फ राजनीतिक समीकरणों का खेल नहीं, बल्कि पिछले पांच वर्षों में हुए बदलावों, योजनाओं के असर और विपक्ष की कमजोरियों का सम्मिलित परिणाम है।
◾️1. सुशासन की ब्रांडिंग—‘काम दिखा है’ नैरेटिव मजबूत रहा
एनडीए ने अपनी पूरी कैम्पेनिंग इसी बिंदु पर केंद्रित रखी कि सड़कें बेहतर हुईं, बिजली-पानी की उपलब्धता बढ़ी, शिक्षा-स्वास्थ्य के ढांचे में सुधार आया, महिलाओं के लिए योजनाओं का सीधा असर पड़ा, बिहार का आम वोटर बुनियादी सुविधाओं में वास्तविक सुधार महसूस कर रहा था, जिससे सरकार के प्रति भरोसा बना।
◾️2. केंद्र और राज्य की ‘डबल इंजन’ अपील
प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और केंद्र की योजनाओं का लाभ ग्रामीण और पिछड़े इलाकों तक पहुंचा। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला, आयुष्मान, मुफ्त राशन, सड़क और रेल कनेक्टिविटी.
इन योजनाओं ने लोगों के मन में यह भरोसा मजबूत किया कि केंद्र-राज्य की एक जैसी सरकार से विकास की गति और तेज होगी।
◾️3. जातीय समीकरणों का सफल प्रबंधन
एनडीए ने OBC, EBC, दलित और महिलाओं के बड़े वर्ग को अपने साथ रखने में बढ़त बनाई।
महिलाओं में नीतीश सरकार का शराबबंदी और सुरक्षा नैरेटिव काफी असरदार रहा।
EBC और महादलित वोट एनडीए के साथ मजबूती से जुड़े रहे। यह वह वर्ग है जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाता है।
◾️4. विपक्ष का छिटकाव और स्पष्ट नेतृत्व का अभाव
जनता का एक बड़ा वर्ग चाहता था कि विपक्ष एक मजबूत और एकजुट विकल्प बनकर सामने आए, लेकिन सीटों का बिखराव, नेतृत्व को लेकर असमंजस, क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने हित ने विपक्ष को कमजोर किया।
जब तक विपक्ष ‘स्पष्ट चेहरा + ठोस प्लान’ नहीं देता, जनता उसे पूरी तरह भरोसेमंद नहीं मानती।
◾️5. सामाजिक योजनाओं का सीधा घरेलू लाभ
बिहार की महिलाओं, युवा वर्ग और वृद्धों ने सरकार की उन योजनाओं को याद रखा जिनका फायदा उन्हें घर में मिला।
वृद्धजन पेंशन, छात्रवृत्ति,छात्राओं के लिए साइकिल-पोशाक योजना, किसान सम्मान निधि, मुफ्त राशन के कारण महामारी काल में मिली राहत. इन योजनाओं ने वोटरों को यह महसूस कराया कि सरकार उनके जीवन में सीधा हस्तक्षेप कर रही है।
◾️6. स्थिरता बनाम अस्थिरता—जनता ‘अनिश्चितता’ से डरती है
बिहार का इतिहास गठबंधन टूटने, दल बदल और अस्थिर सरकारों से भरा रहा है। इस बार मतदाता ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि उसे बार-बार के राजनीतिक प्रयोग नहीं, बल्कि स्थिर व्यवस्था चाहिए।
एनडीए ने खुद को स्थिर शासन का प्रतीक बनाकर पेश किया।
◾️7. लोकल नेतृत्व का माइक्रो-मैनेजमेंट
एनडीए के विधायकों, कार्यकर्ताओं, पंचायत स्तर के कैडर ने बूथ-स्तर पर बेहतर माइक्रो प्लानिंग की। घर-घर सम्पर्क, लोकल मुद्दों की पहचान, इसने अंतिम समय में भी झुकते हुए मतदाताओं को अपने पाले में खींच लिया।
जनता ने “काम + भरोसा + स्थिरता” को चुना
एनडीए को मिली जीत यह बताती है कि बिहार की राजनीति अब केवल जातीय गणित पर आधारित नहीं रह गई है।
वोटर अब ठोस काम, योजनाओं के असर और भविष्य की स्थिरता को तवज्जो दे रहा है।
जनता ने यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया—
“विकास की गाड़ी चलती रहनी चाहिए, चाहे धीमी चले… पर रुके नहीं।”











