सुरखी : आकर्षक का केंद्र बना शिवशक्ति दैवियों का चैतन्य दरबार

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा सुरखी में चार दिवसीय शिवशक्ति दैवियों का चैतन्य दरबार आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, जिसमें कन्याओं को माँ भवानी के देवी स्वरूप में आकर्षक अंदाज में सजाया गया है। इस चैतन्य दरबार का दर्शन करने प्रतिदिन श्रृद्धालुओं का भीड़ उमड़ रही है ।

बुधवार के दिन भाजपा नेता मूरतसिंह राजपूत, नवदुर्गा उत्सव समिति के पंडित सहित क्षेत्र के अन्य गणमान्य नागरिक चैतन्य दरबार के दर्शन करने आए ।

इस अवसर पर चैतन्य दरबार में विराजमान शैलपुत्री देवी का आध्यात्मिक अर्थ बताते हुए ब्रह्माकुमारी लक्ष्मी दीदी ने बताया, कि “शैल + पुत्री” अर्थात् हर वो कन्या शैलपुत्री है, जो पर्वत के समान अचल, अडोल रह कर ,अपने जीवन में आने वाली हर समस्या का डटकर मुकाबला करती है और अपने श्रेष्ठ लक्ष्य की ओर अग्रसर रहती है। यहां श्रेष्ठ लक्ष्य से मतलब है खुद के कल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण के लक्ष्य की ओर अग्रसर रहना, वही शैलपुत्री देवी के समान है।यहां शैलपुत्री देवी के वस्त्र सफेद और सादगी को लिए हुए हैं ,जो एक कन्या के बाल स्वरूप, सादगी पूर्ण जीवन को दर्शाता है।

अवगुण हमें भक्ति की शक्ति से वंचित करते हैं

जो दुर्गुणों का नाश करें वही दुर्गा मां के रूप में है हम भक्ति कितनी भी करें लेकिन अवगुण, बुराइयां हमें उस भक्ति की शक्ति से वंचित कर देती हैं। हमें अपने जीवन में देवियों के समान गुण धारण करना है। हमारे देश में देवियों का पूजन यह सिद्ध करता है कि हमें मातृशक्ति का सम्मान करना चाहिए।
“शस्त्रों का आध्यात्मिक रहस्य”

देवियों को दिखाए गए स्थूल शस्त्रों का आध्यात्मिक अर्थ समझाते हुए बताया कि नारी शक्ति में अनेक गुण, कलायें, भावनाएं, विशेषताएं होती हैं। माँ दुर्गा के एक हाथ में कमल पुष्प दिखाते हैं। कमल पुष्प समान न्यारा, प्यारा, पवित्र जीवन जीने की कला का प्रतीक है। दूसरे हाथ में स्वदर्शन चक्र दिखाते हैं जो स्वयं के बारे चिंतन करने की कला का प्रतीक है । तीसरे हाथ में तलवार दिखाते हैं जो मायावी शक्ति के बंधन को काटने मधुर वाणी द्वारा सर्व का कल्याण करने का प्रतीक है। चौथे हाथ में भाला दिखाते हैं जो अग्नि देव ने माता को भेंट में दिया था। जिससे समग्र विकार रूपी असुर का नाश किया था। पांचवें हाथ में बाण दिखाते हैं, ज्ञान बाण द्वारा आसुरों का संहार करने का प्रतीक है। छठवें हाथ में त्रिशूल दिखाते हैं यह भी मायावी शक्ति को संहार करने का प्रतीक है ।सातवां हाथ वरदानी दिखाते हैं जो सर्व को शक्तियों का दान देने का प्रतीक है । आठवें हाथ में गदा दिखाते हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा आसूरी शक्तियों पर जीत पाने का प्रतीक है।
“अपनी वाणी से सुखदाई बोल बोलो”
अगर वर्तमान समय भीहर नारी इन शस्त्रों को धारण करेगी तो हर एक नारी माँ दुर्गा, माँ काली बनकर कुछ समय में ही इस विश्व में जो आसुरी शक्ति फैली हुई है उनका संहार कर विश्व को स्वर्ग बना सकेगी। हर मानव को दानव से देवता बना सकेगी । फिर ऐसी नारी शक्ति का भारत माता के रुप में गायन हो जायेगा। हम सबको अपनी वाणी से सुखदाई बोल बोलने चाहिए, स्वयं का चिंतन कर अपने दुर्गुणों को खत्म करना है। ज्ञान रूपी शस्त्रों से विकारों और दुर्गुणों का नाश कर और शिव परमात्मा को याद कर गुणवान और पूजन योग्य बनना हैं।

दरबार में चैतन्य देवी माँ दुर्गा जी की आरती कर सभी को प्रसाद वितरण किया गया।


“नवदुर्गा उत्सव समिति रही उपस्थित”
इस अवसर पर सागर सेवाकेंद्र प्रभारी राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी छाया दीदी , भाजपा नेता मूरतसिंह राजपूत, नवदुर्गा उत्सव समिति के पंडित जी एवं सभी समिति सदस्य, ब्रह्माकुमार पप्पू भाई, ब्रह्माकुमार पीयूष भाई,वंदना बहन सहित क्षेत्रवासी उपस्थित रहे।