मकरोनिया : संगीतमय भागवत कथा का भव्य समापन

अभिनंदन नगर राजाखेड़ी मकरोनिया में विगत 8 सितंबर से 14 सितंबर तक भव्य संगीतमय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा का आयोजन बड़े ही श्रद्धा और उत्साह के साथ संपन्न हुआ।

सात दिनों तक चले इस आयोजन में प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु एकत्रित होकर कथा श्रवण का पुण्य लाभ प्राप्त करते रहे। कथावाचक के रूप में पधारे श्री संतोष कृष्ण स्नेह जी महाराज ने अपने मधुर वचनों और संगीतमय प्रस्तुति से वातावरण को भक्ति रस से सराबोर कर दिया।

कथा के अंतिम दिन महाराज श्री ने भागवत महापुराण के अनेक दिव्य प्रसंगों का वाचन करते हुए भगवान की भक्ति का महत्व विस्तार से समझाया। उन्होंने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि यदि प्राणी अपने मन को भगवान की भक्ति में लगाता है, तो उसका संपूर्ण जीवन ईश्वर की छत्रछाया में सुरक्षित रहता है। मां के संचालन से लेकर प्राणी के भवसागर पार करने तक का कार्य स्वयं भगवान करते हैं।

“शिव की महिमा का किया गुणगान”

 कथा के दौरान महाराज ने भगवान शिव की महिमा का विशेष रूप से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि शिव ऐसे देवता हैं, जो न केवल देवताओं के भी देवता हैं, बल्कि वे भाग्य का लिखा हुआ भी बदल सकते हैं। इसी कारण उन्हें महादेव कहा जाता है। महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि शिव का स्मरण करने मात्र से जीवन में आने वाले संकट दूर हो जाते हैं और साधक को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।

उन्होंने कामदेव और रति की कथा का उदाहरण देते हुए समझाया कि जब कामदेव ने भगवान शिव के ध्यान में विघ्न डालने का प्रयास किया, तब शिव ने अपने क्रोधाग्नि से उसे भस्म कर दिया। किंतु रति के करुण विलाप को देखकर शिव ने करुणा की वर्षा करते हुए कामदेव को अनंग रूप में पुनर्जीवित कर दिया। इससे यह शिक्षा मिलती है कि भगवान शिव केवल संहारक ही नहीं, बल्कि करुणा और पुनरुत्थान के भी प्रतीक हैं।

“मार्कंडेय ऋषि की अमरता का प्रसंग”

भागवत आचार्य श्री संतोष कृष्ण स्नेह जी महाराज ने प्रसंग सुनाते हुए बताया कि भगवान शिव ही ऐसे देव हैं, जिन्होंने मृत्यु के लिखे को भी बदल डाला। बालक मार्कंडेय को अल्पायु में मृत्यु का भाग्य लिखा था। किंतु उनकी अथाह भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने यमराज तक को पराजित कर दिया और उन्हें अमरत्व का वरदान प्रदान किया। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से की गई भक्ति मनुष्य के भाग्य को भी बदल सकती है।

“भक्ति का महत्त्व”

 संतोष कृष्ण स्नेह जी महाराज ने समापन दिवस पर श्रद्धालुओं को संदेश देते हुए कहा कि मनुष्य जीवन दुर्लभ है। इसे केवल सांसारिक मोह-माया और भोग विलास में न गँवाएँ, बल्कि भगवान की भक्ति और सत्संग में लगाएँ। उन्होंने यह भी कहा कि जो साधक सच्चे मन से भगवान का ध्यान करता है, उसकी नैया भवसागर से पार हो जाती है।

“भक्तिमय वातावरण में हुआ समापन” सप्ताह भर चले इस आयोजन के दौरान कथा स्थल पर भक्ति गीतों और झाँकियों ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। संगीतमय भजनों पर श्रोता भावविभोर होकर झूमते और तालियों की गड़गड़ाहट से वातावरण गुंजायमान कर देते। अंतिम दिन कथा पूर्णाहुति के उपरांत महाआरती और प्रसाद वितरण हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित हुए।