ईद मीलादुन्नबी का पर्व इस्लाम के पैग़ंबर मोहम्मद साहब की पैदाइश का दिन है। यह दिन मुसलमानों के लिए खुशी, शांति और ईमान का प्रतीक माना जाता है। मस्जिदों में नमाज़, इबादत और तक़रीरें इस दिन का मुख्य स्वरूप हैं। किंतु पिछले कुछ वर्षों से यह पर्व कई बार विवादित नारों और जुलूसों के कारण चर्चा का विषय बन रहा है।
सागर की घटना
सागर शहर में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग लंबे समय से साथ रहते आए हैं। यहाँ के त्यौहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि साझा संस्कृति का दर्पण हैं। ऐसे में किसी भी विवादित घटना का असर पूरे सामाजिक ढांचे पर पड़ता है।
नारेबाजी करने वाले कुछ व्यक्तियों की हरकतों से पूरी बिरादरी की छवि पर प्रश्न उठना भी अनुचित है।
सागर में इस बार निकाले गए जुलूस में “सर तन से जुदा” जैसे नारे लगे। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है। यह नारा न केवल असंवैधानिक और भड़काऊ है, बल्कि धार्मिक भावनाओं के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को हिंसक मानसिकता की ओर मोड़ देता है। प्रशासन की त्वरित कार्रवाई से यह संदेश गया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं।
देशव्यापी परिप्रेक्ष्य
सागर की घटना कोई अकेली मिसाल नहीं है।
▪️2022 में अमरावती (महाराष्ट्र), अजमेर (राजस्थान), आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश) जैसे शहरों में भी ईद मीलादुन्नबी के जुलूस में यही नारे लगे और कई जगहों पर एफआईआर दर्ज हुई।
▪️रतलाम (MP) में फिलिस्तीनी झंडा लहराने पर मामला दर्ज किया गया।
▪️मंडला और बालाघाट (MP) में भी इसी तरह की शिकायतें सामने आईं।
इन उदाहरणों से यह साफ है कि कुछेक लोग त्यौहार की पवित्रता को उत्तेजक प्रदर्शन से कलंकित कर देते हैं। इससे न केवल धार्मिक सौहार्द प्रभावित होता है बल्कि पूरे समुदाय की छवि पर भी प्रश्नचिह्न लग जाता है।
समाज और प्रशासन की भूमिका
प्रशासन की जिम्मेदारी है कि ऐसे मामलों में कठोर और त्वरित कार्रवाई करे, ताकि भीड़तंत्र को यह संदेश मिल सके कि कानून-व्यवस्था से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं होगा। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि निर्दोष श्रद्धालुओं को बिना कारण परेशान न किया जाए।
समाज की जिम्मेदारी है कि उत्सवों में संयम और अनुशासन बनाएँ। त्यौहार आस्था का प्रतीक हैं, ताक़त का प्रदर्शन नहीं।
धार्मिक नेतृत्व की ताकीद
मौलाना, हाफ़िज़ और अन्य दीन के ओहदेदार इस दिन खास तौर पर लोगों को मस्जिदों में आने और इबादत पर ध्यान देने की ताकीद करते हैं। उनका कहना होता है कि पैग़ंबर मोहम्मद की असली शिक्षा करुणा और इंसानियत है, न कि उत्तेजना और नारेबाजी। यदि समुदाय इस दिशा-निर्देश पर गंभीरता से चले, तो जुलूसों को विवाद का केंद्र बनाने की गुंजाइश ही न रहे।
ईद मीलादुन्नबी का संदेश भाईचारा, दया और शांति है। लेकिन कुछेक विवादित नारे पूरे पर्व की आत्मा को कमजोर कर देते हैं। आज ज़रूरत है कि धार्मिक पर्वों को राजनीति या नफरत का माध्यम न बनाया जाए। प्रशासन को सजग रहना होगा, समाज को संयम रखना होगा और धार्मिक नेताओं को अपने अनुयायियों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देनी होगी। तभी यह पर्व अपने असली स्वरूप “खुदा की इबादत और इंसानियत के पैग़ाम को जनमानस तक पहुँचा सकेगा।”










