सागर में अनुशासन हुआ लापता

“अनुशासनहीन राजनीति की नई पटकथा — सागर में कांग्रेस का ढोल-मजीरा धरना चर्चा में”

सागर।

राजनीति जब सीमाओं से बाहर जाती है, तो जनता सोचने लगती है — “”क्या अब विरोध भी अनुशासन भूल गया है?””

सागर में हाल ही में जो दृश्य दिखा, वह राजनीति के मंच पर नया तमाशा था।

जिला शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेश जाटव के में कार्यकर्ता विधायक शैलेंद्र जैन के निवास तक पहुंचे 

हाथों में ढोल, मजीरे और दीवारों पर “लापता जनप्रतिनिधि” के पोस्टर। बापू के भजन “रघुपति राघव राजा राम” की धुन पर विरोध का सुर छेड़ा गया,

जैसे लोकतंत्र किसी लोक-गीत में बदल गया हो।

शहर की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक सवाल गूंज रहा है —

“क्या विधायक के निवास पर ढोल बजाना लोकतांत्रिक विरोध है या अनुशासनहीन राजनीति का शोर?”

कई वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि विरोध तो हर लोकतंत्र की आत्मा है, पर उसकी भी एक मर्यादा होती है।

त्योहारों के बीच प्रशासनिक कार्रवाई पर असंतोष होना स्वाभाविक है, लेकिन अगर जनप्रतिनिधि के घर को ही विरोध का मंच बना दिया जाए,

तो ये राजनीति की मर्यादा नहीं, उसकी सीमा लांघने जैसा है।

◾️राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है —

◾️कांग्रेस ने शायद जनता की नाराज़गी जताने का तरीका चुना, पर वह तरीका संदेश से ज़्यादा सुनाई दे गया।

◾️ढोल-मजीरे की आवाज़ जनता की पीड़ा को व्यक्त तो कर गई, पर राजनीति की परिपक्वता को धुंधला भी कर गई।

वहीं, कुछ लोग कांग्रेस के साथ भी खड़े दिखे, उनका कहना है कि “जब नेता जनता से गायब हैं, तो उनके दरवाज़े तक जाना भी विरोध का हक़ है।”

कुल मिलाकर सागर की सड़कों पर यह धरना सिर्फ़ एक घटना नहीं, बल्कि राजनीति की उस दिशा का संकेत है, जहाँ अनुशासन, संवाद और शालीनता धीरे-धीरे गायब होती जा रही है।

अब शहर पूछ रहा है —

“क्या राजनीति की इस नई पटकथा में अब संवेदनशीलता की जगह शोर ने ले ली है?”