जनता पर न बढ़े भार

सागर नगर निगम वेतन भुगतान के लिए ले सकता है 5 करोड़ का लोन — विकास और कर्मचारियों के हित में कदम, पर जनता पर न बढ़े भार.

वित्तीय दबाव से जूझ रहे सागर नगर निगम ने अपने कर्मचारियों के वेतन एवं अन्य बकाया भुगतान सुनिश्चित करने के लिए लगभग 5 करोड़ रुपये का ऋण (लोन) लेने की तैयारी शुरू कर दी है। यह कदम फिलहाल आवश्यक माना जा रहा है ताकि दीपावली पूर्व कर्मचारियों को समय पर वेतन और भत्ते मिल सकें।

राज्य के 13 नगर निगम पहले से कर्जदार

मध्यप्रदेश के कई नगर निगमों ने भी पहले अपने वित्तीय दायित्वों और विकास योजनाओं को पूरा करने के लिए बैंक या मध्यप्रदेश शहरी विकास कंपनी लिमिटेड (MPUDCL) जैसी एजेंसियों से लोन लिया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की 13 नगर निगमों पर लगभग ₹320 करोड़ से अधिक का सामूहिक ऋण बकाया है।

◾️लोन से विकास की दिशा मजबूत

वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, अगर किसी नगर निगम के पास सीमित राजस्व स्रोत हैं और उसके समक्ष वेतन भुगतान या अधोसंरचना विकास जैसी तात्कालिक आवश्यकताएँ हैं, तो लोन लेना एक व्यावहारिक और वित्तीय अनुशासनयुक्त उपाय है।

भोपाल, इंदौर, जबलपुर जैसे नगर निगमों ने भी इसी रास्ते से अपने वित्तीय तंत्र को संभाला और पेयजल, सड़क, स्वच्छता जैसी योजनाएँ पूरी कीं।

अब सागर नगर निगम का 5 करोड़ का लोन प्रस्ताव भी उसी क्रम की कड़ी माना जा रहा है।

◾️कर्मचारियों के हित में राहतभरा कदम

निगम प्रशासन का कहना है कि अगर लोन स्वीकृत होता है तो कर्मचारियों के वेतन और एरियर भुगतान में कोई विलंब नहीं होगा। समय पर वेतन मिलने से निगम कर्मियों का मनोबल बढ़ेगा और कार्यप्रणाली में तेजी आएगी। इससे त्योहारों के समय कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलेगी।

◾️जनता पर अतिरिक्त कर न थोपें

हालांकि वित्तीय विश्लेषकों का यह भी मानना है कि लोन की अदायगी के लिए शहरी जनता पर नया करारोपण या संपत्तिकर/जलकर वृद्धि जैसे कदम उठाना अनुचित होगा।

नगर निगम को अपनी आंतरिक राजस्व वसूली बढ़ाने, अचल संपत्तियों से किराया, विज्ञापन कर, और बकाया वसूली तंत्र को सशक्त करने की दिशा में ध्यान देना चाहिए।

इससे न केवल ऋण अदायगी संभव होगी बल्कि जनता पर भी कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा।

सागर नगर निगम द्वारा प्रस्तावित ₹5 करोड़ का लोन एक व्यवहारिक और संवेदनशील निर्णय है — यह जहां कर्मचारियों के हितों की रक्षा करेगा, वहीं बेहतर वित्तीय प्रबंधन के जरिये शहरी विकास को भी गति देगा।
ज़रूरत सिर्फ इतनी है कि इस ऋण की अदायगी का बोझ नागरिकों पर नए कर या शुल्क बढ़ोतरी के रूप में न डाला जाए, बल्कि आंतरिक संसाधनों से आर्थिक अनुशासन कायम किया जाए।